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कुपोषण की मार झेल रहे नॉनिहालो की स्थिति दयनीय

आंगनवाड़ी न्यूज़

इटावा मे बढ़ रहा कुपोषण

इटावा के जिला अस्पताल में अप्रैल से लेकर अक्टूबर तक यहां 52 अति कुपोषित बच्चे भर्ती हुए थे। सितंबर माह में यहां पर 18 बच्चे भर्ती हुए थे। जबकि अक्टूबर में 2 बच्चे भर्ती हुए थे जिसमें एक बच्चे की छुट्टी कर दी गई है जबकि दूसरा बच्चा लगभग 10 दिनों से यहां पर भर्ती है। एक बच्चे की देखरेख में डाइटीशियन, 3 स्टाफ नर्स,एक केयरटेकर, एक कुक की ड्यूटी लगाई जाती है। यहां पर 14 से 21 दिन तक बच्चे को उसके वजन के अनुसार भर्ती किया जाता है। एनआरसी में सुविधाओं की कोई कमी नहीं है लेकिन अभिभाबक यहां बच्चों को भर्ती नहीं कराते है

अब बाल विकास विभाग की बात की जाये तो जिले में 1564 आंगनबाड़ी केंद्र हैं। लेकिन इसके बाद भी विभाग स्टाफ की भारी कमी से जूझ रहा है। यहां पर लगभग 5 वर्षों से जिला कार्यक्रम अधिकारी की स्थाई तैनाती नहीं है कार्यक्रम अधिकारी का कार्यभार अन्य विभागों के अधिकारी देखते हैं। वर्तमान में जिला पिछड़ा वर्ग कल्याण अधिकारी प्रशांत कुमार सिंह को जिला कार्यक्रम अधिकारी का अतिरिक्त प्रभार दिया गया है। इसके अलावा 9 सीडीपीओ में सिर्फ दो की तैनाती है जबकि 56 मुख्य सेबिका के पद स्वीकृत हैं जिसमें 13 कार्य कर रही है। वही 250 आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों के पद खाली चल रहे हैं। ऐसे में जो कार्यक्रम संचालित हो रहे हैं उसमें विभाग को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है शासन में कई बार इसके लिए पत्र लिखे गए लेकिन अभी तक कोई सुनवाई नहीं हुई है।

कुपोषण की मार पर गौर किया जाये तो कुपोषित बच्चों के साथ किशोरियों को भी पोषाहार इस समय नहीं मिल रहा है। 5377 कुपोषित बच्चे तथा 428 किशोरियां पोषाहार से बंचित है। सिर्फ 16879 धात्री व 17716 गर्भवती महिलाओं को ही पोषाहार दिया जा रहा है। धात्री व गर्भवती महिलाओं को डेढ़ डेढ़ किलो दलिया व चावल, 1 किलो चने की दाल, 500 ग्राम रिफाइंड तथा अति कुपोषित बच्चों को 2 किलो चने की दाल, 2 किलो दलिया, 2 किलो चावल व 500 ग्राम रिफाइन्ड दिया जा रहा है।

शासन ने अति कुपोषित बच्चों को गौशालाओं से दूध देने के निर्देश दिए थे लेकिन जिले में किसी भी अति कुपोषित बच्चे को गाय का दूध गौशाला से उपलब्ध नहीं हो पा रहा है। बताया गया है कि जिले कि किसी भी गौशाला में दुधारू पशु नहीं है जिसके कारण दूध उपलब्ध नहीं हो पा रहा है। जिले में आधा सैकड़ा से अधिक सरकारी गौशाला है। जबकि प्रभारी जिला कार्यक्रम अधिकारी का कहना है कि मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी के मुताबिक किसी भी गौशाला में दुधारू पशु नहीं है जिसके कारण बच्चों को गाय का दूध नहीं मिल पा रहा है। कुल मिलाकर शासन ने जो निर्देश दिए थे वह हवा में उड़ रहे हैं।

जनपद में आंगनवाडी केन्द्रों पर एक नजर

जिले में कुल आंगनबाड़ी केंद्र 1564

जिले में परियोजनाओं की संख्या 09

जिले मे 6 माह से 3 वर्ष तक के कुल बच्चे 74876

जिले में 3 वर्ष से 6 वर्ष के कुल बच्चों की संख्या 52067

गर्भवती महिलाओं की संख्या 17716

जिले में धात्री महिलाओं की संख्या 16879

जिले में किशोरियों की संख्या 428

जिले में 0 से 5 वर्ष तक के बच्चों की संख्या 126201

बजन किए गए बच्चों की संख्या 122370

जिले में कुल सामान्य बच्चे 115837

जिले में कुल कुपोषित बच्चों की संख्या 5377

जिले में अति कुपोषित बच्चों की संख्या 1156

जिले में कुल सैम बच्चों की संख्या 65

 जिले के विभिन्न इलाकों में लगभग 435 पोषण वाटिका तैयार की गई थी। लेकिन इनमें से अधिकतर पोषण वाटिका दम तोड़ चुकी हैं। पोषण बाटिकाओं के लिए सरकार के द्वारा बीज भेजे जाते हैं। जिले में कुल आंगनबाड़ी केंद्रों की संख्या 1564 है लेकिन 800 केंद्रों पर ही पोषण बाटिका के लिए पालक, भिंडी, टमाटर, लौकी, बैगन, रमास के बीच भेजे गए थे। अगर विभाग की माने तो लगभग ढाई सौ पोषण वाटिका संचालित है।

प्रभारी जिला कार्यक्रम अधिकारी प्रशांत कुमार सिंह ने बताया है कि जिले में जो अति कुपोषित गंभीर श्रेणी के बच्चे हैं उन्हें जिला अस्पताल के पोषण पुनर्वास केंद्र में भर्ती कराया जाता है। इसके अलावा इन बच्चों को डबल पोषाहार भी दिया जाता है। गौशालाओं से गाय के दूध के लिए संपर्क किया गया था लेकिन दुधारू गाय हो ना होने के कारण दूध उपलब्ध नहीं हो पा रहा है।अति कुपोषित बच्चों का ध्यान विभाग के द्वारा रखा जाता है। किसी भी समाज सेवी संस्था का कोई सहयोग नहीं मिलता है। कुछ आंगनबाड़यिों के द्वारा अतिकुपोषित बच्चों को भर्ती करानें में लापरवाही की जा रही है साथ ही त्यौहार का समय है ऐसे में अभिभावक अपने बच्चों को भर्ती कराने से कतरा रहे है। 

शासन के द्वारा कुपोषित व अति कुपोषित बच्चों के साथ किशोरियों और महिलाओं के लिए तमाम योजनाएं चलाई जा रही है। लेकिन हकीकत में इन योजनाओं का लाभ सही हाथों में पूरी तरह से नहीं पहुंच पा रहा है। पिछले दिनों कोरोना की तीसरी लहर की आशंका को देखते हुए कुपोषित बच्चों के लिए प्रशासन ने जिस तरह से कमर कसी थी वह भी अब ढीली हो गई है। कुल मिलाकर दलिया व चने की दाल के सहारे कुपोषण से जंग लड़ी जा रही है। इतना ही नहीं जिले में 1173 अति कुपोषित बच्चे हैं इनमें से एक बच्चे का इलाज जिला अस्पताल की एनआरसी में हो रहा है।

जिले में कुपोषित बच्चों के साथ अति कुपोषित बच्चों की संख्या कोई कम नहीं है इस समय 1173 बच्चे अति कुपोषित और 5548 बच्चे कुपोषित चिन्हित किए गए हैं। सितंबर के महीने में अभियान चलाकर 158 अति कुपोषित तथा 441 कुपोषित बच्चे खोजे गए थे। पहले तो बच्चों को चने की दाल दलिया, चावल रिफाइंड के साथ मिल्क पाउडर भी मिलता था लेकिन अब मिल्क पाउडर बंद कर दिया गया है इतना ही नहीं 3 से 6 वर्ष तक के बच्चों का समय से पूरा पोषण भी उपलब्ध नहीं हो पाता है। जिसके कारण काफी बच्चे पोषण लेने से छूट जाते हैं। विभाग के द्वारा अधिक उपस्थित बच्चों को डबल पोषाहार देने के दावे किए जा रहे हैं।

जिले के चकरनगर ब्लॉक में 64 अति कुपोषित तथा 332 कुपोषित, ताखा ब्लॉक में 140 अति कुपोषित तथा 793 कुपोषित, भरथना ब्लॉक में 193 अति कुपोषित 507 कुपोषित, जसवंत नगर ब्लॉक में 109 अति कुपोषित व 590 कुपोषित, बसरेहर ब्लॉक में 107 अति कुपोषित व 553 कुपोषित,बढ़पुरा ब्लॉक में 81 अति कुपोषित व 494 कुपोषित, महेवा ब्लाक में 148 अतिकुपोषित व 811 कुपोषित, सैफई ब्लॉक में 65 अति कुपोषित व 681 कुपोषित तथा इटावा शहर में 266 अति कुपोषित तथा 786 कुपोषित बच्चे चिन्हित किए गए है।

कुपोषण की चपेट में 33 हजार बच्चे

फ़र्रुखाबाद  कुपोषण के खिलाफ जंग जीतने को शासन स्तर से बेशक गंभीर प्रयास किए जा रहे हैं मगर विभागीय स्तर से जोर लगाए जाने के बाद भी कुपोषित/अति कुपोषित बच्चों के अभिभावक नियमित रूप से इलाज कराने को तैयार नहीं हो रहे हैं। जबकि लोहिया अस्पताल के एनआरसी में डॉक्टर और स्टाफ की तैनाती है। यही नहीं शहर और ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चों और गर्भधात्री महिलाओं को अनुपूरक पोषाहार का भी वितरण किया जा रहा है।

पोषण अभियान के अंतर्गत आंगनबाड़ी केंद्रों पर गतिविधियां बढ़ाई जाएंगी। इसके अंतर्गत न सिर्फ अन्न प्रासन दिवस होगा बल्कि किशोरी दिवस और गोदभराई दिवस भी मनाया जाएगा। आंगनबाड़ी केंद्रों पर छोटे छोटे तंबुओं में केाविड प्रोटोकाल का पालन करते हुए गतिविधियां आयोजित की जाएंगी। समुदाय आधारित दो सामुदायिक गतिविधियों के लिए 250 रुपये की दर से आवश्यक सामग्री की खरीद के लिए धनराशि मिलेगी।

जिले में 1752 आंगनबाड़ी केंद्रों के अधीन करीब 125000 लाभार्थी हैं। कुपोषित और अति कुपोषित बच्चों की जिले में फिलहाल संख्या 3580 है। शासन के निर्देशानुसार लाभार्थियों को खाद्य तेल के अलावा चना, गेहूं, दलिया और कोटेदार के माध्यम से चावल का वितरण कराया जाता है। जहां तक लाभार्थियों की संख्या का सवाल है तो छह माह से तीन वर्ष के लाभार्थियों की संख्या 58975 है। तीन से छह वर्ष तक के 35400 बच्चे हैं। गर्भधात्री महिलाओं की संख्या 28895 है।

अति कुपोषित बच्चों के इलाज को लेकर लोहिया अस्पताल में एनआरसी स्थापित है। पिछले समय में देखने को आया है कि जिन बचों को इलाज की जरूरत होती है उनके अभिभावक एनआरसी में इलाज कराने को तैयार नहीं होते हैं जबकि विभागीय स्तर से इसको लेकर लगातार जोर लगाया जा रहा है।

जिले में अभी भी तकरीबन 33 हजार बच्चे कुपोषण का शिकार, इतनी बड़ी संख्या में कुपोषित बच्चों का मिलना परेशान कर देना वाला योजनाएं तमाम पर कम नहीं हो रहा कुपोषण

जिला कार्यक्रम अधिकारी बुद्धि मिश्रा ने बताया है कि विभाग उपलब्ध संसाधनों के साथ कुपोषण को दूर करने के लिए भरपूर कोशिश कर रहा है। हमारे जनपद का औसत राष्ट्रीय व प्रादेशीय औसत से भी बेहतर है। हम कुपोषण को दूर करने के लिए समुचित प्रयास जारी रखेंगे। अंतत: जीत सुपोषण की होगी। कुपोषित बच्चों को पोषण पुर्नवास केंद्र में भी सेहतमंद करने की भी योजना साकार की जा रही है। 

जिले में तकरीबन 425000 बच्चे आंगनबाड़ी केंद्रों पर पंजीकृत हैं। पर जनपद में इस वित्तीय वर्ष तीन लाख 49 हजार बच्चों के लिए ही पोषाहार मिल रहा है। बीते दो वित्तीय वर्षों में यह संख्या और भी कम थी। ऐसे में रोटेशन से ही पोषाहार वितरण कर काम चलाया जा रहा है। पोषाहार, दलिया, दालों और रिफाइंट वितरण में घटतौली और न बांटने की शिकायतें भी आती रहती है और कार्रवाई भी होती रहती है, जो कहीं न कहीं कुपोषण को हावी देने का मौका देती हैं।

जनपद के पिहानी में पोषण मिशन को कारगर बनाने के लिए गांव-गांव आंगनबाड़ी केंद्र खोले गए हैं। हालांकि कई गांवों व नगर इलाके में केंद्र किराए के भवन में संचालित हैं। उन्हें विभाग के स्तर से निजी भवन नहीं मुहैया कराया जा सका है। पिहानी की सीडीपीओ सूफिया बानो कहती हैं कि कुपोषित बच्चों को चिह्नित कर उनके दवा, इलाज के साथ अन्य सुविधाएं दिलाई जा रही हैं। प्रगति की समय-समय पर समीक्षा भी की जाती है। संबंधित को आवश्यक सुधार के निर्देश दिए जाते हैं।

कुपोषण से जूझ रहा जनपद

हरदोई  सरकार की महिलाओं, किशोरियों और बच्चों को कुपोषण से बचाने की तमाम योजनाओं के बावजूद नतीजे बहुत उत्साहित करने वाले नहीं हैं। जिले में अभी भी तकरीबन 33 हजार बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। इतनी बड़ी संख्या में कुपोषित बच्चों के आंकड़े परेशान करने वाले भी हैं। कहीं न कहीं पोषाहार, दूध वितरण, एमडीएम, स्वच्छ भारत मिशन जैसी योजनाओं के साथ ही स्वास्थ्य सेवाओं की पोल भी खोल रहे हैं। यह हाल तब है जबकि एचसीएल फाउंडेशन 169 आंगनबाड़ी केंद्रों में पंजीकृत 4449 बच्चों की स्वास्थ्य व पोषण का प्रबंधन अपनी देखरेख में कर रहा है। वहीं बाल विकास विभाग ने भी 160 आंगनबाड़ी केंद्रों को आदर्श की श्रेणी में रखा है। इसके साथ ही लगातार चार साल से तीन माह का गर्भ धारण करने वाली महिलाओं की मॉनीटरिंग शुरू कर दी जाती है। स्वास्थ्य विभाग की ओर से पोषाहार के साथ ही महिलाओं को गोद भराई कार्यक्रम में कैल्शियम व आयरन की दवाएं नियमित रूप से दी जाती हैं। छह माह का बच्चा होने पर आंगनबाड़ी केंद्र पर अन्न प्राशन कर उसे भी पोषाहार देना शुरू कर दिया जाता है।

पशु आश्रय स्थलों में रखी गई दुधारू गायों को कुपोषित परिवारों को देने की योजना शुरू की गई है। कुपोषित बच्चों वाला परिवार अधिकतम चार गौवंश ले सकता है। सीवीओ डॉ. जेएन पांडे ने बताया ब्लॉक पर सीडीपीओ व वीओ की संयुक्त टीम बनाई गई है जो कुपोषित बच्चों वाले परिवार को गाय लेने के लिए प्रेरित करेंगे। प्रति गौवंश पशुपालकों को नौ सौ रुपए महीना दिया जाएगा

कानपूर देहात में कुपोषण की स्थिति दयनीय

कानपुर देहात जिम्मेदारों की लापरवाही ने जिले में कुपोषण के खिलाफ जंग को कमजोर कर दिया है। यहां चिह्नित हुए 4918 कुपोषित बच्चों को पोषण पुनर्वास केंद्र में भर्ती कराने में जिम्मेदार रूचि ही नहीं ले रहे हैं। इस केंद्र में काफी दिनों से तालाबंदी की स्थिति होने के बाद भी जिम्मेदार चिह्नित कुपोषित बच्चों में 243 को आंकडों में पोषित कर लिए जाने का दावा कर रहे हैं।

कुपोषित बच्चों के पोषण के लिए जनवरी 2016 में जिला अस्पताल के इंसेटिव कार्डिक केयर यूनिट में पोषण पुनर्वास केंद्र की स्थापना की गई थी। इसमें कुपोषित बच्चों को भर्ती कर उनके इलाज के साथ न्यूट्रीशन व दवाओं, फल व पोषाहार आदि उपलब्ध कराने तथा उनकी 24 घंटे देखभाल करने की व्यवस्था है। साथ रहने वाली माताओं के यहां ठहरने व निशुल्क भोजन की व्यवस्था है। जबकि कुपोषित बच्चों के शारीरिक एवं मानसिक विकास के लिए खिलौनों आदि का भी इंतजाम है।आंगनबाडी कार्यकर्तियों के रुचि न लेने से पोषण पुनर्वास केंद्र का लाभ कुपोषित बच्चों को नहीं मिल पा रहा था। कुपोषित बच्चों के पोषण की बेहद खराब स्थिति पर मिशन निदेशक अपर्णा उपाध्याय ने हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर में तैनात सीएचओ, एएनएम व बीएचएनडी टीमों को ऐ बच्चें को चिह्नित कर पोषण पुनर्वास केंद्र में भर्ती कराने की जिम्मेदारी सौंपी थी। इसके बाद भी हालात में कोई सुधार नहीं हो सका। जिले में अब तक 4918 कुपोषित बच्चे चिह्नित हुए। इनमें 4323 बच्चे पीली श्रेणी व 595 बच्चे लाल श्रेणी के शामिल हैं।

अभियान के दौरान चिन्हित किए गए बच्चों के लिए संचालित योजना के तहत पोषाहार हर महीने पहुंचाया जा रहा है। उचित दर विक्रेता के जरिए चिन्हित बच्चे को चावल दिया जाता है। जबकि एसजीएस के जरिए दलिया, दाल आदि पहुंच रहा है। कोरोना संक्रमण के दौरान जिले में कोई भी कुपोषित बच्चा कोरोना संक्रमित नहीं हुआ है। 

 सीएमओ ने बताया कि कुपोषित बच्चों के लिए जिला अस्पताल में पोषण पुनर्वास केन्द्र संचालित है। बच्चों की जांच करने के बाद उनको यहां पर भर्ती किया जा रहा है। इलाज के साथ ही बच्चे व उसकी मां को भोजन, दूध आदि की सुविधा है। अभियान के दौरान सैम-मैम बच्चे चिन्हित किए जा चुके है। जिला अस्पताल के पोषण पुनर्वास केन्द्र में चार बच्चे भर्ती किये गये है और 1974 मैम और 1547 बच्चे अति कुपोषित श्रेणी में मिले

चित्रकूट में कुपोषण से हालात ख़राब

चित्रकूट शासन कुपोषित बच्चों, किशोरियों और महिलाओं के लिए तमाम योजनाएं चला रही है। लेकिन योजनाओं का लाभ पात्रों को नहीं मिल पाता। जिला प्रशासन की ओर से दो बार अभियान चलाकर सैम-मैम बच्चों का चिन्हांकन कराया गया है। जिसमें 614 सैम, 1974 मैम व 1547 अति कुपोषित बच्चे मिले है। जिला अस्पताल में पोषण पुनर्वास केन्द्र पर बच्चों को सभी सुविधाएं दी जा रही है। मौजूदा समय पर चार बच्चे भर्ती है। सैम बच्चों को रोजाना अस्पताल में लाकर परीक्षण किया जा रहा है।

शासन के निर्देश पर दो बार अभियान चलाकर सैम-मैम बच्चों का चिन्हांकन कराया गया है। अब् इन बच्चों को शिफ्टवार लाकर जिला अस्पताल में उनकी जांच कराई जा रही है। कुपोषित पाए जाने वाले बच्चों को जिला अस्पताल में संचालित पोषण पुनर्वास केन्द्र पर एक पखवारा भर्ती कर सभी सुविधाएं प्रदान की जा रही है। खास बात यह है कि पिछले दिनों कोरोना की तीसरी लहर की आशंका पर कुपोषित बच्चों के लिए प्रशासन ने कमर कसी थी। लेकिन अब वह ढीली हो गई है। यही वजह है कि चिन्हांकन के बाद अब परीक्षण में लापरवाही बरती जा रही है। गांव स्तर पर नियुक्त स्वास्थ्य व बाल विकास विभाग की कर्मचारी को चिन्हित बच्चों को अस्पताल तक पहुंचाने की जिम्मेदारी मिली है। दावे किए जा रहे हैं कि रोजाना 40 से 50 बच्चे जिला अस्पताल लाए जा रहे है। जिनकी गठित टीम अच्छी तरह से जांच करती है। जिन बच्चों को भर्ती करने की जरूरत है, उनको यहां पर एक पखवारा के लिए भर्ती किया जाता है।

कोरोना की संभावित तीसरी लहर की आशंका को देखते हुए कुपोषित बच्चों के लिए प्रशासन ने कमर कसी थी और इसमें लगे सभी विभागों को कुपोषण से निपटने के लिए दिशा निर्देश देकर इसका खाका भी तैयार किया गया था। लेकिन कुपोषित बच्चों को खोजने का काम अब पहले जैसा नहीं दिखाई दे रहा है। आंगनबाड़ियों के माध्यम से जीरो से पांच साल के बच्चों का वजन कराने के बाद कुपोषित व अति कुपोषित बच्चों की पहचाना कराई जा रही है।

कुपोषित बच्चो की बढ़ती संख्या का जिम्मेदार कौन

उरई  कुपोषण के खिलाफ जंग में भले ही स्वास्थ्य महकमे के साथ तमाम विभाग मिलकर एक साथ काम कर रहे हों लेकिन इसके बावजूद भी कोराना काल में कुपोषित बच्चों को पोषित करने में कहीं न कहीं यह कोशिश धीमी पड़ती जा रही है। योजना का लाभ भी सही हाथों तक नहीं पहुंच पाता है।

कोरोना काल में कुपोषण के खिलाफ जंग की रफ्तार अब धीमी हो रही है। इसका एक कारण यह भी है कि कुपोषित बच्चों के लिए बांटी जाने वाली सामग्री सही हाथों तक नहीं पहुंच पाती है। वहीं आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों का कहना है कि बच्चों को बांटने वाली समाग्री समय से नहीं मिली है और पर्याप्त मात्रा में आती भी हुई। कागजों में कुपोषित बच्चों को पोषित करने की व्यवस्था तो अच्छी नजर आती है लेकिन धरातल पर इसका असर इतना नजर नहीं आता है। इन योजनाओं के सफल संचालन के लिए स्वास्थ्य महकमे के साथ कार्यक्रम विभाग, शिक्षा विभाग, पंचायत विभाग के साथ ही अन्य विभाग भी साथ मिलकर काम कर रहे हैं।

तीव्र कुपोषित बच्चों को पोषण पुनर्वास केंद्र में किया जाता भर्ती : कुपोषित व तीव्र कुपोषित बच्चों को आंगनबाड़ियों के माध्यम से दूध, दलिया व पौष्टिक आहार बांटा जाता है। जबकि तीव्र कुपोषित बच्चों को जिला अस्पताल के पोषण पुनर्वास केंद्र में 14 दिनों के लिए भर्ती कर उनका इलाज के साथ ही पोषित बनाने और वजन बढ़ाने के लिए पौष्टिक आहार व दवाएं दी जाती हैं। डीपीआरओ इफ्खिार अहमद का कहना है कि शासन के निर्देशों का पालन हो रहा है। सभी सामाग्री पर्याप्त रूप से बांटी जा रही हैं।

जनवरी माह में कराए गए सर्वे के अनुसार जनपद में 4013 कुपोषित व तीव्र कुपोषित बच्चे पाए गए थे। इसमें 3208 बच्चों को पोषित होने के बाद इस समय 805 अवशेष कुपोषित व तीव्र कुपोषित बच्चे हैं। जिन्हें आंगनबाड़ियों व स्वास्थ्य महकमे के माध्यम से पोषित करने की कवायद जारी है। सीएमओ डॉक्टर एनडी शर्मा का कहना है जो भी कुपोषित बच्चे आ रहे हैं उनका इलाज हो रहा है। कोरोना में बच्चों को पोषण नहीं दे पा रहे थे

जिले में 36 हजार कुपोषित बच्चो की संख्या ने चौकाया

फतेहपुर शासन द्वारा बच्चों को कुपोषण से बचाने की तमाम योजनाओं के बावजूद नतीजे बहुत उत्साहित करने वाले नहीं हैं। जिले में अभी भी 36 हजार से अधिक बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। जिनमें छह हजार से अधिक बच्चों का अति कुपोषित की श्रेणी में रखा गया है।

इतनी बड़ी संख्या में कुपोषित बच्चों के आंकड़े परेशान करने वाले भी हैं। जिला कार्यक्रम विभाग द्वारा ऐसे बच्चों दुगुना आहार देकर उनका स्वास्थ्य परीक्षण भी करा रही है। लेकिन अभिभावक जिला अस्पताल स्थित एनआरसी में रुक कर बच्चों को सेहतमंद बनाने में कोताही बरत रहे हैं। कुपोषण के खिलाफ जंग जीतने को शासन स्तर से बेशक गंभीर प्रयास किए जा रहे हैं लेकिन विभागीय स्तर से जोर लगाए जाने के बाद भी कुपोषित/अति कुपोषित बच्चों के अभिभावक नियमित रूप से इलाज कराने को तैयार नहीं हो रहे हैं। जबकि जिला अस्पताल के एनआरसी में डॉक्टर और स्टाफ की तैनाती है। यही नहीं शहर और ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चों और गर्भधात्री महिलाओं को अनुपूरक पोषाहार का भी वितरण किया जा रहा है। जिले के आंगनबाड़ी केंद्रों में 260550 लाभार्थी बच्चे हैं। कुपोषित और अति कुपोषित बच्चों की जिले में फिलहाल संख्या 36424 है। जिसमें 6580 बच्चे अतिकुपोषित हैं।

शासन के निर्देशानुसार लाभार्थियों को नेफैर्ड द्वारा सोयाबीन तेल के अलावा चना दाल, दलिया और कोटेदार के माध्यम से चावल का वितरण कराया जाता है। कुपोषण की श्रेणी में आने वाले बच्चों को खाद्य तेल छोड़ शेष आहार दुगुना दिया जाता है।

विजयीपुर ब्लाक में 2520 कुपोषित:विजयीपुर ब्लाक क्षेत्र में ही देखा जाए तो यहां पर 2520 बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। जिसमें 1830 कुपोषित तो 394 बच्चे अतिकुपोषित की श्रेणी में हैं। जिन्हे विभाग द्वारा आहार देकर सुपोषण की श्रेणी में लाने की कवायद की जा रही है। जिसमें दो फीसदी भी सुधार होता नहीं दिखता है।जिससे वह भी सुपोषण बन सके। जिसे गांव स्तर पर वितरण कराया जाता है।

अति कुपोषित बच्चों के इलाज को लेकर जिला अस्पताल में एनआरसी स्थापित है। पिछले समय में देखने को आया है कि जिन बच्चों को इलाज की जरूरत होती है उनके अभिभावक एनआरसी में इलाज कराने को तैयार नहीं होते हैं जबकि विभागीय स्तर से इसको लेकर लगातार जोर लगाया जा रहा है। बीते तीन माह में 657 कुपोषित बच्चों को स्थानीय स्तर से एनआरसी रेफर किया गया है।

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