लखनऊ से आई टीम के आगे अधिकारी हतप्रभ,पांच वर्ष तक की उम्र का हर तीसरा बच्चा व हर पांचवीं महिला कुपोषित
आंगनवाडी न्यूज़
पीलीभीत के पूरनपुर में मंगलवार को लखनऊ से आई टीम ने सरकारी भवनों के निर्माण में खानापूर्ती की पोल खोल दी पूरनपुर के चार अलग-अलग गांवों में पहुंची टीम को आंगनबाड़ी केंद्र और शौचालयों का हाल बेहद खराब मिला।टीम ने गहनता के निरीक्षण कर इसकी रिपोर्ट तैयार की है। और इससे जुड़े जिम्मेदारों पर नाराजगी जताते हुए कार्यवाही की उम्मीद की जा रही है
मंगलवार को लखनऊ से आई टीम पूरनपुर के गांव गांव महदखास (महादिया), गैरतपुर जप्ती, अजीतपुर बिल्हा, दिलावरपुर में पहुंची। अलग अलग गांवों में पहुंची टीमों ने आंगनबाड़ी और शौचालय, पंचायत घरों आदि का निरीक्षण किया। निरीक्षण में कई शौचालय और आंगनवाड़ी केंद्र आधे अधूरे पाए गए। इसपर टीम ने जिम्मेदारों पर नाराजगी जताई। साथ की भवनों में खामियों की रिपोर्ट तैयार की। टीम के साथ में ब्लाक कोआर्डीनेटर शिवशंकर मौजूद रहे। उन्होंने सरकारी भवनों के निर्माण में हुई खानापूरी की पोल न खुले। एडीओ पंचायत अजय देवल ने बताया कि पूरनपुर के चार गांवों में टीम पहुंची। निरीक्षण में क्या देखा, इसकी जानकारी नहीं है। कहा जाए तो स्थानीय जिम्मेदार अधिकारी इस टीम के निरीक्षण की जानकारी देने से कतराते देखे गएहै
पांच वर्ष तक की उम्र का हर तीसरा बच्चा व हर पांचवीं महिला कुपोषित
नवंबर में जारी राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-5) के आंकडे़ भारत में कुपोषण की स्थिति में धीमी प्रगति के संकेत देते हैं। यह समस्या लगातार गंभीर बनी हुई है, और पांच वर्ष तक की उम्र का हर तीसरा बच्चा व हर पांचवीं महिला कुपोषित है। हर दूसरा शिशु, किशोर और महिला खून की कमी से ग्रसित है। यह स्थिति तब है, जब प्रसव-पूर्व देखभाल सहित मातृ-शिशु स्वास्थ्य सेवाओं, बाल टीकाकरण और दस्त प्रबंधन में सकारात्मक प्रगति हुई है।
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दरअसल, जीवन के शुरुआती 1,000 दिनों (270 दिन गर्भावस्था के और 730 दिन शून्य से 24 महीना के) में ये सकारात्मक रुझान नहीं दिखते। अपने यहां मातृ पोषण की कोई ठोस नीति नहीं है। हालांकि, साल 2000 से शिशु और छोटे बच्चे के दुग्धपान (आईवाईसीएफ) पर काम जरूर हो रहा है, लेकिन इसे बढ़ावा देना, जैसे कि पहले छह महीनों के लिए विशेष स्तनपान और प्रभावी नर्सिंग सुनिश्चित करना, इसके बाद स्तनपान के विकल्प के रूप में बच्चे को उपयुक्त हल्का ठोस भोजन देने संबंधी लोकाचार का आज भी अभाव है। आईआईटी, बॉम्बे में सीटीएआरए के रूपल दलाल द्वारा गुजरात के बनासकांठा जिले में किया गया अध्ययन बताता है कि प्रसव-पूर्व और प्रसव के बाद देखभाल के दौरान महिलाओं को अगर स्वास्थ्यकर्मियों द्वारा स्तनपान व दुग्धपान के बारे में बताया जाता है, तो उसका फायदा होता है। ऐसी प्रशिक्षित माओं के केवल 9.8 फीसदी बच्चे शुरुआती छह महीने में कम वजन के पाए गए, जबकि अप्रशिक्षित माताओं में यह आंकड़ा 18.1 फीसदी था। एनएफएचएस-5 बताता है कि शिशुओं के हल्के ठोस आहार पर भी ध्यान देने की जरूरत है। अपने यहां छह महीने से ऊपर के 10 में से सिर्फ एक बच्चे को तय मानक के हिसाब से पर्याप्त आहार मिल पाता है।
अन्य एशियाई देशों में स्थिति लगभग पांच गुना बेहतर है। हमारे खराब प्रदर्शन की मुख्य वजह सूचना-प्रसार की कमी है। हालत यह है कि 20 फीसदी कुपोषित बच्चे संपन्न समुदायों से आते हैं। इसके अलावा, अधिक वजन वाली माओं वाले परिवारों में भी अक्सर कुपोषित बच्चे मिल जाते हैं। असल में, शिशुओं की देखभाल करने वालों को यह साफ-साफ पता ही नहीं होता कि छह महीने से अधिक उम्र के शिशु को क्या, कब और कितनी बार खिलाना है। इतना ही नहीं, उन्हें स्तनपान भी कराते रहना चाहिए। दुग्धपान के बारे में सटीक जानकारी न होने की सूरत में बच्चे में मोटापे, पोषक तत्वों की कमी और गैर-संक्रामक रोग की आशंका बढ़ जाती है। पर्याप्त आहार न मिलने के कारण शिशुओं को होने वाले नुकसान के बारे में माता-पिता अनभिज्ञ रहते हैं। घर में पकी दाल, दही, हरी सब्जियां, घी, अंडे आदि खिलाने के बजाय वे बच्चों के पैकेटबंद खाने पर रोजाना 25-30 रुपये खर्च करने पर गर्व महसूस करते हैं। यह धारणा आज भी कायम है कि छह से आठ महीने के बच्चे हल्के ठोस पदार्थ नहीं निगल सकते, इसलिए उनको खिचड़ी के बजाय अक्सर पानी वाली दालें पिलाई जाती हैं।
स्वास्थ्यकर्मियों को सही समय पर उचित परामर्श देना होगा। एक प्रमुख कार्यक्रम के तौर पर समन्वित बाल विकास योजना (आईसीडीएस) चल रही है, लेकिन यह माताओ के लिए नहीं है। इसके विपरीत, सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में कम से कम 15 मौकों पर (गर्भावस्था की शुरुआत से लेकर बच्चे के 16 महीने की उम्र तक) उनका मां से वास्ता पड़ता है, और यह पोषण कार्यक्रमों को भी प्रभावित कर सकता है। ऐसे में, जरूरी है कि वैकल्पिक पोषण तंत्र पर काम किया जाए। नीति-निर्माताओं को पता करना चाहिए कि क्या आईसीडीएस के बजाय नियमित स्वास्थ्य प्रणाली को पोषण कार्यक्रमों में हस्तक्षेप का अधिकार दिया जाना चाहिए? अगर दोनों के मानव संसाधनों को एक कर दिया जाए, तो मातृ-बाल पोषण व स्वास्थ्य सेवा कार्यबल को मजबूती मिलेगी। यह प्रयास बाल मृत्यु-दर भी कम कर सकता है, क्योंकि भारत में पांच वर्ष तक के बच्चों में 68 फीसदी की मौत की वजह कुपोषण है।