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किशोर से ज्यादा बेटियां हो रही कुपोषण का शिकार,अभिभावक बेटी के प्रति लापरवाह

कुपोषण

उत्तरप्रदेश मे आज भी बच्चो के लिंग मे भेदभाव किया जा रहा है। अभिभावक बेटी से ज्यादा बेटे के स्वास्थ्य को लेकर ज्यादा चिंतित है। जिसके कारण बेटों से ज्यादा बेटियां कुपोषण की शिकार हो रही हैं। अभी अभिभावक बेटी के खान-पान व स्वास्थ्य को लेकर गंभीर नहीं है जिसके कारण प्रदेश मे बेटियां ज्यादा बीमार हो रही हैं।

बलरामपुर जिले मे अस्पताल के पोषण पुनर्वास केंद्र में पहली अप्रैल 2023 से 31 मार्च 2024 के बीच 241 कुपोषित बच्चे भर्ती किए गए। जिसमे ज़्यादातर बेटियों को पोषण पुनर्वास केंद्र में भर्ती कराना पड़ रहा है। चिकित्सा अधीक्षक डॉ. हिमांशु चतुर्वेदी ने बताया कि भर्ती होने वालों में 121 बेटियां और 120 बेटे हैं।

इन बच्चो मे छह माह से कम 47 बच्चे हैं। जबकि छह से 24 माह तक के 147 बच्चे हैं। पहली अप्रैल 2024 से 10 अक्तूबर तक छह माह से दो साल की 99 बेटिया भर्ती की गयी हैं। कुपोषण के मामले में बेटियां की संख्या ज्यादा बढ़ रही हैं।

डॉक्टरों ने बताया है कि इलाज से लेकर टीकाकरण कराने तक में किशोर और किशोरी मे भेदभाव किया जा रहा है। अधूरा टीकाकरण होने के कारण बेटियां ज्यादा बीमार हो रही हैं। कुपोषण को रोकने के लिए संतुलित आहार का सेवन करना चाहिए। यदि शरीर में सभी पोषक तत्व पर्याप्त मात्रा में खाने से कुपोषण की रोकथाम के लिए ज्यादा खाने की संभावना कम होगी।

आगरा जिले के बोदला क्षेत्र की रहने वाली 23 साल की रचना के चार बच्चे हैं। जिसमे माँ और बच्चे कुपोषित दोनों हैं। प्रसव कराने से पहले दो बार रक्त चढ़वाना पड़ता है। बच्चे को पोषण पुनर्वास केंद्र में भर्ती करके इलाज करा रही हैं।

गरीबी और कम उम्र में शादी करना कुपोषण की बड़ी वजह बन रहा है। जिला अस्पताल में पोषण पुनर्वास केंद्र में पिछले सात वर्षों में 3000 से अधिक कुपोषित बच्चे इलाज के लिए भर्ती हुए। जिनमें 1208 लड़कों की तुलना में 1392 लड़कियां का इलाज किया गया है। देखा जाये तो लड़कों के मुकाबले 1092 अधिक लड़किया कुपोषण का शिकार हुई है।

अभिभावकों द्वारा बेटा-बेटी के खानपान में भेदभाव होने के कारण बेटिया ज्यादा कुपोषित हो रही हैं। आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और आशा कार्यकर्ता द्वारा कुपोषित बच्चों को एनआरसी में भर्ती होने के लिए भेजा जा रहा। जहा पर इन कुपोषित बच्चों का इलाज किया जाता है।

अभिभावक द्वारा बेटियों की सेहत के प्रति लापरवाह होने के कारण एनआरसी में आने वाले बच्चो में बेटियों की संख्या अधिक है। पिछले साल एनआरसी में 50 लड़के और 61 लड्किया भर्ती की गयी है। जबकि जनवरी से मार्च तक 65, अप्रैल से जून तक 15, जुलाई से सितंबर तक 78 बच्चे भर्ती हुए है।

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