आंगनवाड़ी मानदेय और ग्रेजुवेटी को लेकर हाईकोर्ट का बड़ा आदेश
मध्यप्रदेश आंगनबाड़ी कार्यकत्री व सहायिका को वेतन सहित अन्य लाभ प्रदान किए जाने की मांग करते हुए मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई थी। राज्य की आंगनवाड़ी यूनियन आंगनबाड़ी कार्यकर्ता एवं सहायिका कल्याण संघ सिवनी की तरफ से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने राज्य सरकार और निदेशक महिला एवं बाल कल्याण विभाग को दो महीने में याचिकाकर्ता के अभ्यावेदन पर विधि अनुसार निर्णय लेने का निर्देश दिया है।
आंगनबाड़ी कार्यकर्ता एवं सहायिका कल्याण संघ सिवनी की ओर से हाईकोर्ट में दायर याचिका मे आंगनाबड़ी कार्यकर्ताओं का वेतन बीस हजार रुपये और सहायिकाओं का वेतन दस हजार रुपये किए जाने की मांग करते हुए केंद्र व राज्य सरकार को अभ्यावेदन दिया था। इस अभ्यावेदन में वेतन वृध्दि, बीमा, पेंशन, ग्रेज्युटी और अन्य लाभ प्रदान किए जाने की भी मांग की गई थी।
इस याचिका में कहा गया था कि उनके अभ्यावेदन पर केंद्र व राज्य सरकार द्वारा कोई निर्णय नहीं लिया गया।याचिका की सुनवाई के दौरान हाईकौर्ट की एकलपीठ को बताया गया कि केंद्र सरकार द्वारा कुपोषण के खिलाफ बनाई गई समेकित बाल विकास योजना के तहत साल 1975 में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय गठित किया गया था। इस योजना के तहत ग्रामीण,शहर तथा महानगरों में आंगनबाड़ी केंद्र स्थापित किए गए थे। इन आंगनबाड़ी केंद्र में एक कार्यकर्ता और एक सहायिका की नियुक्ति की गई थी, जिनके मानदेय की 60 प्रतिशत राशि केंद्र सरकार तथा 40 प्रतिशत राज्य सरकार प्रदान करती है।
याचिका मे दलील दी गई है कि आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं व सहायिकाओं से 12 घंटे काम लिया जाता है।लेकिन सरकार आंगनवाड़ी को अल्प कर्मी मानते हुए मात्र 4 घंटे के हिसाब से भुगतान कर रही है जबकि आंगनवाड़ी वर्करो से अपने विभाग के कार्यो के अतिरिक्त उनसे सरकारी योजनाओं के प्रचार-प्रसार, चुनाव ड्यूटी व अन्य शासकीय कार्य लिए जाते हैं।
जबकि आंगनवाड़ी वर्करो पर अपने विभागीय कार्यो मे महिला के गर्भ में बच्चा के आने से लेकर उनकी डिलीवरी करवाने, पांच साल तक बच्चों का पालन पोषण करने, उनको शिक्षित करने तथा 12 साल तक की किशोरियों को जागरूक करने का कार्य पहले से ही दायित्व हैं। भारतीय संविधान के अनुच्देछ 123 और मजदूरी अधिनियम के विपरीत आंगनवाड़ी को कम वेतन दिया जा रहा है।
याचिकाकर्ता की तरफ से अधिवक्ता बालकिशन चौधरी और प्रशांत मिश्रा ने इस केस की पैरवी की है। राज्य की हाईकोर्ट के जस्टिस राज मोहन की एकलपीठ ने याचिका का निराकरण करते हुए राज्य सरकार और निदेशक महिला एवं बाल कल्याण विभाग को निर्देशित किया है कि वे दो महीने में याचिकाकर्ता के अभ्यावेदन पर विधि अनुसार निर्णय लें।