हाईकोर्ट ने कहा कि आंगनवाड़ी सरकारी कर्मचारी बनने की हकदार, नीति बनाने तक न्यूनतम मजदूरी दी जाए
आंगनवाड़ी को मिलेगा सरकारी कर्मचारी का दर्ज़ा
राज्य की लगभग एक लाख आंगनवाड़ी वर्करो के मानदेय और सेवा नियमावली के सम्बंध मे हाईकौर्ट ने बड़ी फैसला सुनाया है। गुजरात हाईकोर्ट ने सरकार को आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को नियमित सेवा में शामिल करने का निर्देश दिया है।
गुजरात हाईकौर्ट ने अपने फैसले मे कहा है कि आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और आंगनवाड़ी सहायिका केंद्रीय या राज्य सरकार में “सिविल पदों पर कार्यरत स्थायी कर्मचारी” के रूप में समायोजित होने की हकदार हैं। इससे गुजरात और अन्य राज्यो की आंगनवाड़ी को बड़ी राहत मिल सकती है। हाईकौर्ट ने अपने फैसले में कहा कि आंगनवाड़ी सेविका और सहायिका केंद्र या राज्य सरकार में ‘सिविल पदों पर स्थायी कर्मचारी’, आसान भाषा में कहें तो वे सरकारी पक्की नौकरी की हकदार हैं.
हाईकौर्ट के न्यायमूर्ति निखिल करियल ने 30 अक्टूबर को जारी आदेश मे कहा है कि केंद्र और राज्य सरकार आंगनवाड़ी वर्करो को सरकारी सेवाओं में शामिल करने के लिए संयुक्त रूप से नीति तैयार करें और केंद्र सरकार द्वारा चलायी जा रही इस प्रायोजित एकीकृत बाल विकास सेवा योजना के तहत उनकी नौकरियों के नियमितीकरण का परिणामी लाभ प्रदान करें।
हाईकौर्ट ने ये आदेश सिविल सेवा (वर्गीकरण और भर्ती) (सामान्य) नियम, 1967 के तहत दिया है। उच्च न्यायालय ने आंगनवाड़ी वर्करो के वेतन पर क्रमशः तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों को उपलब्ध न्यूनतम वेतनमान में विचार करने का भी आदेश दिया है।
गुजरात हाईकोर्ट ने कहा कि केंद्र और राज्य सरकार आईसीडीएस योजना को लेकर बड़े बड़े वादे और विचार देती है लेकिन इस योजना को धरातल पर चलाने वाली आंगनवाड़ी को बहुत कम मानदेय का भुगतान करती है हाईकोर्ट ने कहा कि एक आंगनवाड़ी कार्यकर्ता को पैरामेडिक, परामर्शदाता, समन्वयक, पीआर प्रबंधक, इवेंट मैनेजर, क्लर्क, प्री-स्कूल शिक्षक और अन्य के रूप में काम करना होता है। लेकिन सरकार इन आंगनवाड़ी को बहुत कम मानदेय देती है। जबकि राज्य और आंगनवाड़ी के बीच मालिक और नौकर का रिश्ता है।
हाईकोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वे हाईकोर्ट के पोर्टल पर फैसला अपलोड होने की तारीख से छह महीने के भीतर नीति तैयार करे साथ ही जब तक सरकार इस संबंध में उचित निर्णय नहीं ले लेती तब तक याचिकाकर्ता आंगनवाड़ी तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के पदों के लिए न्यूनतम वेतनमान पर वेतन पाने की हकदार हैं।
हाईकोर्ट ने ये निर्देश 2015 में दायर आंगनवाड़ी वर्करो की सैकड़ों याचिकाओं के सम्बंध मे दिया हैं। ये आंगनवाड़ी 10 साल से अधिक समय से काम कर रही थीं और लगातार सेवा के नियमितीकरण और न्यूनतम वेतन की मांग कर रही थीं। इन पदों पर काम करने वाली आंगनवाड़ी वर्करो ने सरकार पर भेदभाव और शोषण का आरोप लगाया और कौर्ट से गुहार लगाई है कि उन्हें आईसीडीएस योजना के तहत मानदेय पर नियुक्त करने की व्यवस्था संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन है।
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में इस बात का भी उल्लेख किया कि आंगनवाड़ी वर्करो और सरकारी कर्मचारियों के मुकाबले भेदभाव आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और आंगनवाड़ी सहायकों के कार्यों, कर्तव्यों और जिम्मेदारियों के आधार पर उनके पारिश्रमिक की तुलना में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।
हाईकोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि आंगनवाड़ी कार्यकत्री को 10,000 रुपये और आंगनवाड़ी सहायिको को 5,500 रुपये, मिलने वाला मानदेय चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी को प्रतिदिन चार घंटे काम करने के लिए मिलने वाले सैलरी से भी कम है। इस फैसले से गुजरात में 1 लाख से अधिक महिला आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और देशभर में 24 लाख से अधिक महिलाओं को लाभ मिलने की संभावना है.