सरकार ने दिव्यांग बच्चों का पता लगाने और उनकी मदद करने के लिए आंगनवाड़ी कर्मचारियों को प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए एक राष्ट्रीय प्रोटोकॉल शुरू किया है। केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने बताया कि यह पहली बार है कि जब आंगनवाड़ी वर्कर इस मुद्दे पर जागरूकता फैलाएंगी। आंगनवाड़ी प्रोटोकॉल फॉर दिव्यांग चिल्ड्रन कार्यक्रम शुरू करने के बाद मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा कि अगर हम इसे सामुदायिक नजरिए से देखें तो यह हमारे समाज में एक मूक क्रांति है।
भारत ने बाल विकास मंत्रालय द्वारा दिव्यांग बच्चों के लिए आंगनवाड़ी प्रोटोकॉल के लॉन्च के साथ समग्र पोषण देखभाल की दिशा में एक और मील का पत्थर हासिल किया है।
स्मृति ईरानी ने कहा कि पहली बार आंगनवाडी बहनें इस तरह की जागरूकता फैलाएंगी। दिव्यांगता समाज के लिए एक चुनौती नहीं है, बल्कि बच्चे की मदद करने के लिए समाज को उपलब्ध एक अवसर है। हमे मानसिकता बदलने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 दिव्यांग विद्यार्थियों को मुख्यधारा के स्कूलों में दाखिल कराने की प्राथमिकता पर जोर देती है।
स्मृति ईरानी ने कहा कि हम जानते हैं कि बच्चे का 85 प्रतिशत मानसिक विकास छह साल की उम्र तक हो जाता है। आज हमारी शिक्षा प्रणाली में दिव्यांग बच्चों के लिए नए प्रावधान हैं। मंत्री ईरानी ने कहा कि दिव्यांग बच्चों के बारे में जमीनी स्तर का डेटा आंगनवाड़ी वर्कर के माध्यम से उपलब्ध किया जाएगा और पोषण ट्रैकर के माध्यम से इन बच्चों पर नज़र रखी जा सकेगी। बाल विकास मंत्रालय द्वारा जारी बयान के अनुसार आंगनवाड़ी वर्कर जन्म से छह साल तक के आठ करोड़ से अधिक बच्चों तक पहुंच रखती हैं।
हमारी आंगनवाड़ी प्रणाली बच्चो के बचपन की देखभाल में वैश्विक अग्रणी के रूप में खड़ी है जो देश भर में 13.9 लाख आंगनवाड़ी केंद्रों के माध्यम से प्रतिदिन 8 करोड़ से अधिक बच्चों के जीवन को प्रभावित करती है। अब यह अग्रणी वर्कर प्रोटोकॉल भारतीय इतिहास में एक ऐतिहासिक पहल है जो हमारे समर्पित आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को बच्चों में विकासात्मक देरी की शीघ्र पहचान के माध्यम से पोषण संबंधी देखभाल को और बढ़ाने के लिए सशक्त बनाता है। हम आंगनवाड़ी द्वारा भारत में बच्चो की समय पर जांच और लक्षित हस्तक्षेप द्वारा लगभग एक तिहाई विकलांगता को रोकने की क्षमता रखते हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के अमृत काल में स्वस्थ सुपोषित भारत के दृष्टिकोण के अनुरूप, यह प्रोटोकॉल चरण-दर-चरण दृष्टिकोण के साथ पोषण अभियान के तहत दिव्यांगजन समावेशी देखभाल के लिए एक सामाजिक मॉडल का प्रतीक है:
चरण 1: प्रारंभिक विकलांगता लक्षणों की जांच
चरण 2: सामुदायिक कार्यक्रमों में शामिल करना और परिवारों को सशक्त बनाना
चरण 3: आशा/एएनएम और राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम (आरबीएसके) टीमों के माध्यम से रेफरल समर्थन