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कुपोषण ख़त्म करने के नाम पर अधिकारियो का कागजी खेल

आंगनवाड़ी न्यूज़

मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल्य श्योपुर जिले की, जहां प्रदेश में सबसे ज्यादा कुपोषित बच्चे हैं। लेकिन प्रशासन और विभाग की लापरवाही से कुपोषित बच्चो की संख्या लगातार बढ रही है कागजो में भी कुपोषण को नही दर्शाया जा रहा है 3 साल पहले रिकॉर्ड में दर्ज 4068 कुपोषित बच्चो को सुपोषित करते हुए वर्तमान समय तक सिर्फ 715 बच्चे ही कुपोषित है बाकी बच्चो का कुपोषण ख़त्म 87% कुपोषण बच्चो को सुपोषित कर दिया गया

बाल विकास विभाग द्वारा कागजी कार्यवाही में 5 साल की उम्र होते ही 2512 कुपोषित बच्चों को विभागीय अधिकारियो ने अपने रिकॉर्ड से बाहर कर सुपोषित कर दिया रिकॉर्ड में न रहने से इस बड़ी संख्या के बच्चो का कुपोषण एक ही झटके में खत्म कर दिया गया

जैसी आंगनवाड़ी कार्यकत्री के पंजीकृत अभिलेख में 25 बच्चे कुपोषित हैं लेकिन इनमें से एक भी सरकारी रिकॉर्ड में नहीं है। अधिकांश आंगनवाडी केन्द्रों पर कुपोषण नापने के लिए जरूरी उपकरण जैसे- वजन मशीन, लंबाई के लिए स्केल नहीं है। जिसकी वजह से प्रशासन के रिकॉर्ड में साल 2020 में जन्म लेने वाले 176 बच्चे कुपोषित थे तो 2021 में ऐसे 19 ही हुए

श्योपुर जिले की सभी 1226 आंगनवाड़ी केन्द्रों को गोद लिया गया गया है आंगनबाड़ी कार्यकर्ता रामश्री गुर्जर ने बताया कि मल्टी विटामिन कुपोषित बच्चों को आंगनवाड़ी पर ही पोषण आहार, समय पर मल्टी विटामिन समेत अन्य जरूरी दवाएं दी जा रही हैं।

विजयपुरा के गोलीपुरा सहराना की आंगनवाड़ी केंद्र पर 250 बच्चे रजिस्टर्ड हैं। आंगनवाड़ी कार्यकत्री रामनिवासी आदिवासी ने बताया- इनमें 25 बच्चे कुपोषित व 5 अतिकुपोषित हैं। पर, सरकारी रिकॉर्ड में एक भी दर्ज नहीं हैं। गोलीपुरा में रहने वाली पूजा रामफल का डेढ़ साल का -बेटा समनवीर इन्हीं कुपोषितों में शामिल है। इसका वजन सिर्फ 5.8 किलो है और विभाग के रिकॉर्ड में ये कुपोषित नहीं है।

बाग चकराना, कराहल की पेहला सी और सेसईपुरा की गढ़ी सहराना की आंगनबाड़ी में वजन नापने की मशीन नहीं मिली। अगर किसी आंगनवाडी केंद्र पर वजन मशीन मिलती है तो वह सही वजन नही बताती कभी वो 20 तो कभी 25 किलो वजन दिखा रही थी। लंबाई नापने वाली मशीन के नाम पर एक टुकड़ा मिला था लेकिन उसमें काफी मिट्टी लगी हुई थी।

शिमला और रंगबेल आदिवासी आंगनवाड़ी वर्करो ने कहा कि सालभर पहले आई बाढ़ में सब बह गया। ऐसे में महीनों से न बच्चों का वजन हुआ और ना लंबई नापी गई है। बाढ़ में वजन सामग्री बहने से वजन न लिए जाने के कारण कुपोषित बच्चे लिस्ट से बाहर होते चले गये

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