हॉटकुक्ड व अन्य मदो में मिलने वाली राशि मे अधिकारियों की बंदरबांट
जैसे कि आपको विदित हो कि 2000 रूपए जो केंद्र संचालन के लिए भेजे जाते है जिसमे बाल्टी,दरी जग आदि के लिए भेजे जाते है उसमें किस तरह सुपरवाइजर से लेकर सीडीपीओ और आला अधिकारियों की बंदरबाट होती है ये विचार यूपी के कई जनपदों की आंगनवाड़ी द्वारा व्यक्त किये है जो आपके समक्ष प्रस्तुतु किये जा रहे है
1.सुपरवाइजर पहले ही दुकान फिक्स करती है और आंगनवाड़ी पर उसी दुकान से सामान लाने का दबाब बनाया जाता है
2.दुकानदार को एक निर्धारित सामान देना होता है और पहले से ही निश्चित राशि लेकर बिल तैयार कराया जाता है इस बिल का आंगनवाड़ी से कोई लेना देना नही होता उन्हें अधिकारियों द्वारा आदेशानुसार दुकानदार को रकम देनी होती है
3.जिस बाल्टी या अन्य सामान की कीमत बाजार में बहुत कम होती है उसकी कई गुना ज्यादा की कीमत का बिल तैयार किया जाता है
4.दुकानदार द्वारा देय सामान की गुणवत्ता निम्म स्तर की होती है जबकि उसका बिल की कीमत एक अच्छे गुणवत्ता रेट पर बनाया जाता है उदाहरण तौर पर जिस बाल्टी की कीमत बाज़ार में 200 से 250 होता है उसका बाउचर 700 से 800 में बनाया जाता है जबकि आंगनवाड़ी को बाल्टी उस गुणवत्ता की मिलती है जो मात्र कुछ ही दिनों में टूट जाती है
ऐसे बहुत से उदाहरण है जिनमे आंगनवाड़ी को सिर्फ एक मोहरे के रुप मे इस्तेमाल किया जाता है अब चाहे विभाग द्वारा दिया गया मोबाइल हो या कुर्सी,मेज,बर्तन ,आदि
इसके अतिरिक्त भी आंगनवाड़ी से नकद रुपए की मांग की जाती है संगठनों द्वारा समय समय पर संबंधित अधिकारियों को लिखित शिकायत करने के बाद भी कोई कार्यवाही नही होती चूंकि icds विभाग में सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार जगजाहिर है जिसके लिए अन्य राज्यो की सांसद भी लोकसभा में आवाज उठा चुकी है लेकिन इन सबके बीच आंगनवाड़ी को बदनाम करने की कोशिश लगातार जारी है